खाद्य सुरक्षा- कल्याण के साथ प्रतिस्पर्धा का मेल

श्री पीयूष गोयल, वाणिज्य और उद्योग, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण और कपड़ा मंत्री

लगभग 80 करोड़ भारतीयों को पूरे देश में किसी भी उचित मूल्य की दुकान से भारी सब्सिडी वाले अनाज खरीदने की स्वतंत्रता है। यह सुविधा लोगों को खाद्य सुरक्षा देने के साथ अभूतपूर्व रूप से सशक्त भी बना रही है और ऐसा लगता है कि देश भर में एक मूक क्रांति चल रही है। यह मोदी सरकार के कल्याण और गरीब-समर्थक दृष्टिकोण को एक नई ऊंचाई पर ले जाती है और ऐसी प्रक्रियाओं की शुरुआत करती है, जिनका पूरे देश पर परिवर्तनकारी प्रभाव पड़ेगा, जो बहुत से लोगों की परिकल्पना से भी अधिक होगा।

उच्च प्रभाव वाली कल्याणकारी योजना नहीं है, जो वंचितों का समर्थन और पोषण करती है, बल्कि यह उचित मूल्य की दुकानों के बीच प्रतिस्पर्धा को भी जन्म देती है और एक आर्थिक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करती है। अब प्रवासी शहरों में भी भारी सब्सिडी वाले अनाज खरीदने में सक्षम हैं और इस बचत का उपयोग अन्य उत्पादों की खरीद में कर सकते हैं।

भारत में, किसी खास सीजन के दौरान लगभग छह करोड़ लोग दूसरे राज्यों में और लगभग आठ करोड़ लोग अपने ही राज्य के अन्य हिस्सों में प्रवास करते हैं। ओएनओआरसी ओडिशा, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों में प्रवासी श्रमिकों के लिए एक गेम चेंजर सिद्ध हुआ है। इससे पहले, जब ऐसे श्रमिक रोजगार के लिए शहरों में जाते थे, तो वे सब्सिडी अनाज पाने की अपनी पात्रता खो देते थे, क्योंकि उनकी यह सुविधा अपने निवास-स्थान के उचित मूल्य की दुकान से जुड़ी होती थी। यदि वे किसी शहर में उचित मूल्य की दुकान पर पंजीकृत होंगे, तो उनके परिवार को बाजार की ऊंची दरों पर अनाज खरीदना पड़ेगा!

ओएनओआरसी के साथ, श्रमिक और उनके परिवार दोनों को आसानी से लाभ मिल सकता है। उनकी बचत बहुत अधिक है, क्योंकि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत भारी सब्सिडी वाले अनाज के अलावा, उन्हें प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत आपूर्ति भी निःशुल्क दी जा रही है।

चूंकि यह योजना भारतीय श्रमिकों को आत्मनिर्भर बना रही है, इसलिए इसे अब आत्मानिर्भर भारत अभियान के तहत प्रधानमंत्री के प्रौद्योगिकी संचालित प्रणालीगत सुधारों का भी हिस्सा बनाया गया है।

इस योजना के अन्य दूरगामी प्रभाव भी हैं। दशकों तक पड़ोस की राशन की दुकान का एकाधिकार रहा था। लाभार्थियों के पास एक विशेष उचित मूल्य की दुकान पर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। दुकान के मालिकों का एकछत्र राज होता था और गुणवत्ता बनाए रखने के लिए कोई प्रोत्साहन भी मौजूद नहीं था।

ओएनओआरसी, न केवल प्रवासियों को, बल्कि प्रत्येक लाभार्थी को, किसी अन्य उचित मूल्य की दुकान से अनाज खरीदने का विकल्प देता है, यदि वह दुकानदार बेहतर गुणवत्ता वाले अनाज बेच रहा है, या बेहतर सेवा प्रदान कर रहा है। एक विक्रेता की देश के सभी राज्यों में स्थित कुल 5 लाख से अधिक दुकानों से प्रतिस्पर्धा है। यह एक ऐतिहासिक बदलाव है, क्योंकि यह दुकानदारों को गुणवत्ता के प्रति जागरूक होने और प्रतिस्पर्धी बनने के लिए प्रेरित करता है।

लाखों उचित मूल्य की दुकानों में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने से, देश के कारोबारी माहौल में समग्र रूप से सुधार होगा, जिससे देशवासियों को वस्तुओं और सेवाओं की बेहतर गुणवत्ता प्राप्त होगी। व्यापार करने के तरीकों में इस तरह के बदलाव से छोटे व्यवसायों को तेजी से विकास करने का मौका मिलेगा, लेकिन इसके लिए उन्हें गुणवत्ता में सुधार और निर्यात बाजार में प्रवेश करने की भी आवश्यकता होगी। इससे बड़ी संख्या में रोजगार के अवसरों का भी सृजन होगा।

एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड (ओएनओआरसी) ने पहले ही बहुत मजबूत शुरुआत कर दी है। शहरी गरीब जैसे कूड़ा बीनने वाले, सड़क पर रहने वाले, संगठित और असंगठित क्षेत्रों के अस्थायी कर्मचारी समेत करोड़ों श्रमिक व दिहाड़ी मजदूर तथा घरेलू कामगार इस अग्रणी योजना का लाभ उठा रहे हैं। अगस्त, 2019 में इस योजना की शुरुआत के बाद से, मूल स्थान की बजाय अन्य स्थानों पर (पोर्टेबिलिटी) हुए लगभग 80 करोड़ लेनदेन दर्ज किए गए हैं। इनमें लाभार्थियों को नियमित होने वाले एनएफएसए और पीएमजीकेएवाई खाद्यान्न वितरण के साथ राज्य के अन्य हिस्सों में और दूसरे राज्यों के हुए लेनदेन दोनों शामिल हैं। इनमें अप्रैल 2020 के बाद से कोविड अवधि के दौरान दर्ज किये गए 69 करोड़ लेनदेन भी शामिल हैं।

डिजिटल इंडिया पर प्रधानमंत्री के जोर ने देश के क्षमता-विकास में योगदान दिया है। प्रौद्योगिकी की सहायता से महामारी की चरम स्थिति के दौरान देश न केवल घर से काम करने (वर्क-फ्रॉम-होम) के नियमों को सहजता से अपनाने में सफल रहा, बल्कि इससे गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन कराने में भी मदद मिली। वर्तमान में 100 प्रतिशत राशन कार्ड डिजिटल हो गए हैं। इसके अलावा, उचित मूल्य की दुकानों में लगभग 5.3 लाख (99%) से अधिक इलेक्ट्रॉनिक प्वाइंट ऑफ सेल उपकरण स्थापित किए गए हैं।

सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त प्रयास किये हैं, ताकि सभी पात्र लाभार्थी योजना का लाभ उठा पाएं। इसे सुविधाजनक बनाने के लिए, खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत अधिक लाभार्थियों को शामिल करने के उद्देश्य से 11 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए प्रायोगिक आधार पर एक ‘सामान्य पंजीकरण सुविधा’ शुरू की है।

इसके अलावा, विभिन्न मंत्रालयों और विभागों ने इस योजना के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए रणनीतिक आउटरीच और संचार से जुड़े अपने प्रयासों को समन्वित किया है। सरकार ने 167 एफएम रेडियो और 91 सामुदायिक रेडियो स्टेशनों का उपयोग करके हिंदी और 10 अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में एक रेडियो-आधारित अभियान चलाया। ट्रेनों में यात्रा करने वाले प्रवासी कामगारों को प्रधानमंत्री का संदेश देने के लिए 2400 रेलवे स्टेशनों पर घोषणाओं और प्रदर्शनों की व्यवस्था की गई। संदेश के व्यापक प्रसार के लिए सार्वजनिक बसों का भी उपयोग किया गया।

यह योजना नरेन्द्र मोदी सरकार के मूल दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित करती है। सार्वजनिक नीति इस तरह से तैयार की जाती है कि यह समाज के सबसे गरीब और वंचित समुदायों को लाभान्वित करे। यह दर्शन ही इस सरकार के आठ परिवर्तनकारी वर्षों के दौरान सभी नीतियों और उपलब्धियों की मूल भावना रही है। शासन के इस दर्शन और दृष्टिकोण ने ही गरीब लोगों को बैंक खाते, सीधे नकद अंतरण, स्वास्थ्य बीमा, हर गांव में बिजली, दूरदराज के इलाकों में भी अच्छी गुणवत्ता वाली ग्रामीण सड़कों और गरीबों को रसोई गैस की आपूर्ति सहित अन्य सुविधाएं दी हैं। आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ पर, भारत तेजी से सभी के लिए विकल्पों की अधिक स्वतंत्रता की ओर आगे बढ़ रहा है। आइए हम उत्सव मनाएं और इस विकल्प सुविधा को सक्षम बनाएं।

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