भारतीय कोयला क्षेत्र खनन की सुदृढ़ व्यवस्था के जरिए पर्यावरण की देखभाल सुनिश्चित कर रहा है
• श्री भवानी प्रसाद पति, आईएएस, भारत सरकार, कोयला मंत्रालय, संयुक्त सचिव
कोयला मंत्रालय के तत्वावधान में कोयला और लिग्नाइट से जुड़े पीएसयू न केवल देश की तेजी से बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर रहे हैं बल्कि कोयला खनन क्षेत्रों में पर्यावरण संरक्षण के लिए अनेक उपाय भी कर रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण की सफलता की कुछ उल्लेखनीय कहानियों में सामुदायिक उद्देश्यों के लिए खदान के अधिशेष पानी का लाभदायक उपयोग, पुनर्निर्मित खनन क्षेत्रों में इको-माइन पर्यटन को बढ़ावा देते हुए हरित क्षेत्र को अधिकतम करना, खनन की प्रक्रिया में निकले अनुपयोगी पदार्थों (ओवरबर्डन) का वैकल्पिक उपयोग, ऊर्जा दक्षता उपाय और कई अन्य शामिल हैं। तेजी से हो रहे शहरीकरण, औद्योगीकरण और जनसंख्या वृद्धि ने जल संसाधनों पर काफी दबाव डाला है। अत: पानी की हर बूंद को संरक्षित और सुरक्षित करने का सही समय है, क्योंकि प्रत्येक बूंद मायने रखती है।
कोयला निकालने की प्रक्रिया के दौरान खानों में एकत्रित भूजल की बड़ी मात्रा का उपयोग, न्यूनतम शोधन के बाद, सिंचाई और पीने के लिए किया जा सकता है। कोयला और लिग्नाइट से जुड़े पीएसयू सामुदायिक उपयोगों जैसे पेयजल और सिंचाई के रूप में अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में इसकी आपूर्ति करके खदान के पानी के संरक्षण और कुशल उपयोग के लिए अनेक कदम उठा रहे हैं। सक्रिय खदानों से छोड़े गए पानी के साथ-साथ कोयला और लिग्नाइट से जुड़े पीएसयू द्वारा उत्पादन या परिचालन नहीं कर रही खदानों में उपलब्ध पानी, कोयला खनन क्षेत्रों के नजदीक 900 गांवों में रहने वाले लगभग 18 लाख लोगों को लाभान्वित करता है। चालू वित्त वर्ष में, कोयला और लिग्नाइट से जुड़े पीएसयू सामुदायिक उपयोग के लिए खान के लगभग 4000 एलकेएल जल की आपूर्ति करने की योजना बना रहे हैं, जिसमें से दिसम्बर 2022 तक 2788 एलकेएल की आपूर्ति की जा चुकी है। इसमें से 881 एलकेएल का उपयोग पीने सहित घरेलू उद्देश्यों के लिए किया गया है। शेष 1907 एलकेएल का उपयोग सिंचाई उद्देश्यों के लिए किया गया है। खदान के पानी के अधिकांश लाभार्थी जनजातीय लोग हैं जो दूरदराज के इलाकों में रहते हैं। यह प्रयास भारत सरकार के जल संरक्षण प्रयासों के “जल शक्ति अभियान” की तर्ज पर है।
भंडार समाप्त होने और खनन किए गए क्षेत्रों के उचित सुधार के बाद, खदान क्षेत्रों में, इको-पार्कों, वाटर स्पोर्ट्स स्थलों, भूमिगत खदान पर्यटन, गोल्फ कोर्सों, साहसिक गतिविधियों, बर्ड वाचिंग, आदि विकसित करने की अच्छी संभावनाएं हैं। ये इको-पार्क स्थानीय आबादी के लिए आजीविका का एक स्रोत प्रदान कर रहे हैं। समय के साथ, कोयला और लिग्नाइट से जुड़े पीएसयू ने विभिन्न राज्यों में कुल 30 इको-पार्क विकसित किए हैं, जो नियमित पैदल चलने के लिए आकर्षित कर रहे हैं, तथा इस तरह के और अधिक इको-पर्यटन और इको-रिस्टोरेशन साइट्स के निर्माण की योजनाएं जारी हैं। कुछ इको-पार्क पहले से ही स्थानीय पर्यटन सर्किट का हिस्सा हैं और कोयला व लिग्नाइट से जुड़े पीएसयू अपने संबंधित राज्य पर्यटन विभागों के साथ मिलकर अधिक इको-पार्कों को जोड़ने का काम कर रहे हैं।
कोयला और लिग्नाइट पीएसयू ने भी पर्यावरण के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए विभिन्न उपाय अपनाकर पर्यावरण के प्रति अपनी संवेदनशीलता और चिंता दिखाई है, जिसमें खनन क्षेत्रों का सुधार और कोयला निकालने के असर वाले क्षेत्रों एवं उसके आसपास व्यापक वृक्षारोपण शामिल है। जिम्मेदारीपूर्ण पर्यावरणीय प्रबंधन के लिए आवश्यक है कि परित्यक्त खनन भूमि को उसके पिछले, स्थिर और उपयोगी भूमि उपयोगों में वापस लाया जाए। कोयला और लिग्नाइट से जुड़े पीएसयू कोयला खनन की गतिविधियों को कम करने के लिए गंभीर प्रयास कर रहे हैं। खदानों को बंद करने की अच्छी तरह से तैयार की गई और अनुमोदित योजनाओं, जिनमें खदानों को प्रगतिशील तरीकों और उन्हें अंतिम रूप से बंद करने से संबंधित विशिष्ट प्रावधान शामिल हैं, के अनुरूप कोयला खदानों को फिर से उपयोगी बनाने के कार्य किए जा रहे हैं।
कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) ने 2022-23 के दौरान दिसम्बर 2022 तक 31 लाख से अधिक पौधे लगाए हैं। पिछले पांच वित्तीय वर्षों के दौरान (वित्तीय वर्ष’22 तक) खनन पट्टा क्षेत्र के भीतर 4392 हेक्टेयर हरियाली ने वातावरण से 2.2 एलटी/वर्ष कार्बन सोखने (कार्बन सिंक) की क्षमता का निर्माण किया है। कोयला/लिग्नाइट से जुड़े पीएसयू ने चालू वित्त वर्ष में दिसम्बर 2022 तक लगभग 2230 हेक्टेयर भूमि पर पौधे और लगभग 360 हेक्टेयर भूमि पर घास लगाई है। कोयला और लिग्नाइट पीएसयू अपनी खानों में सीड बॉल प्लांटेशन, ड्रोन और मियावाकी पौधारोपण के माध्यम से बीज कास्टिंग जैसी नवीन तकनीकों को भी लागू कर रहे हैं। खनित क्षेत्र, खनन की प्रक्रिया में निकले अनुपयोगी पदार्थों और अन्य क्षेत्रों के सक्रिय खनन क्षेत्रों से अलग होते ही उनको पुनः उपयोगी बनाने का कार्य तत्काल किया जाता है। वनीकरण संबंधी यह कार्य और हरित पट्टी विकास कार्य कार्बन सिंक का भी निर्माण कर रहे हैं। खनन कार्यों के दौरान निकलकर हवा में फैलने वाले धूल के कणों को रोककर घने वृक्षों का आवरण वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में भी मदद करता है।
हमारे नदी के इकोसिस्टम को संरक्षित करने के प्रयास के रूप में, कोयला और लिग्नाइट क्षेत्र से जुड़े पीएसयू ने कोयला खनन के दौरान निकले अनुपयोगी पदार्थों से रेत को अलग करना शुरू कर दिया है। इस पहल से न केवल रेत की गाद के कारण पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में मदद करेगी बल्कि नदी की पर्यावरण प्रणाली में भी सुधार होगा। कोयला और लिग्नाइट से जुड़े पीएसयू, नदी की रेत की तुलना में कम लागत पर उच्च गुणवत्ता वाली औद्योगिक-ग्रेड निर्मित रेत की आपूर्ति कर रहे हैं। वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड वर्तमान में खनन की प्रक्रिया में निकले अनुपयोगी पदार्थों से रेत के दो संयंत्रों का संचालन कर रहा है और उसने 55719.92 एम3 चट्टानों का पुनर्संसाधन करके 22287.97 एम3 रेत का उत्पादन किया है। कोयला क्षेत्र में, अब तक, छह अनुपयोगी पदार्थों-से-रेत प्रसंस्करण संयंत्र चालू हैं, और अनेक चालू होने वाले हैं।
ऊर्जा संसाधनों का कुशल उपयोग और उनका संरक्षण अत्यधिक महत्व रखता है, क्योंकि खपत स्तर पर बचाई गई ऊर्जा की एक इकाई अंततः कार्बन फुटप्रिंट के बराबर कमी में तब्दील हो जाती है। कोयला व लिग्नाइट से जुड़े पीएसयू विभिन्न ऊर्जा संरक्षण और दक्षता उपाय कर रहे हैं, जैसे कि एलईडी लाइट्स, ऊर्जा दक्ष एसी, इलेक्ट्रिक वाहन, डीसी सुपर पंखे, दक्ष वॉटर हीटर, स्ट्रीट लाइट में ऑटो टाइमर, कैपेसिटर बैंक और छत पर सौर परियोजनाओं का वितरण और उन्हें स्थापित करना। सीआईएल ने अपने सभी कार्यालयों में पारंपरिक प्रकाश व्यवस्था को शत-प्रतिशत बदलकर एलईडी रोशनी का उपयोग सफलतापूर्वक शुरू कर दिया है।
कोयला खनन से जुड़ी धारणाओं को दूर करते हुए, कोयला और लिग्नाइट से जुड़े पीएसयू न केवल कोयला खनन के लिए एक समग्र दृष्टिकोण का पालन कर रहे हैं, बल्कि कोयला खनन के लिए दीर्घकालिक और पर्यावरण अनुकूल कार्य प्रणालियों को अपना रहे हैं ताकि पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को कम किया जा सके और उन्हें घटाया जा सके।
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लेखक, भारत सरकार के कोयला मंत्रालय में संयुक्त सचिव हैं।