संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और भारत में जन्मे और पले-बढ़े 30 युवाओं ने धर्म और मानवता के लिए निःस्वार्थ सेवामय जीवन की शुरुआत की
संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और भारत में जन्मे और पले-बढ़े 30 युवाओं ने धर्म और मानवता के लिए निःस्वार्थ सेवामय जीवन की शुरुआत की. 2 अक्टूबर 2023 को न्यू जर्सी के बीएपीएस स्वामिनारायण अक्षरधाम मंदिर में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में उन्होंने महंत स्वामीजी महाराज से त्यागाश्रम की दीक्षा ली और अपने जीवन को सेवा-भक्ति-त्याग और विश्व कल्याण के लिए समर्पित कर दिया. यह समर्पण अटूट विश्वास, एकता और भक्ति द्वारा निर्देशित मार्ग के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता का प्रतीक है.
दीक्षा दिवस उन 30 युवा आत्माओं की अदम्य भावना का प्रमाण है, जिन्होंने विश्वप्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों और कंपनियों में अध्ययन और व्यवसायों के विभिन्न क्षेत्रों को अपनाया था. उनमें से कुछ ऐसे युवा भी हैं, जो अपने माता-पिता के एकमात्र संतान हैं. यह दर्शाता है कि उन्होंने और उनके परिवारों ने समाज और विश्व की व्यापक भलाई के लिए एक अनुपम बलिदान दिया है. माता और पिता ने प्रसन्न मन से इन युवाओं को दीक्षा की अनुमति देकर सनातन धर्म की बड़ी सेवा की है.
साधु जीवन की ओर अग्रसर करती हुई यह पवित्र दीक्षा, जो कि नि:स्वार्थ सेवा के लिए समर्पित एक श्रद्धेय समूह है. साथ ही मानवता के उत्थान के लिए विनम्रता, करुणा और अटूट समर्पण के मूल्यों को उजागर करती है. यह इस गहन विश्वास को रेखांकित करता है कि व्यक्तिगत समर्पण समाज पर स्थायी, सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. आज के इस समारोह में प्रात: परम पूज्य महंतस्वामी महाराज ने सभी युवाओं को वैदिक दीक्षा मंत्र प्रदान किया.
दीक्षा दिवस का सार सनातन धर्म के शाश्वत मूल्यों में निहित है जिसे इन युवाओं ने आज चुना है. यह उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने की उनकी प्रबल प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जहां दूसरों की सेवा को प्राथमिकता दी जाती है और समुदाय की भलाई उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता बन जाती है. नव दीक्षित संतों-पार्षदों से सीधे बात करते हुए महंतस्वामी महाराज ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा, ‘भगवान और समाज की सेवा करना आपके मन में दृढ़ था आज नए जीवन का आरंभ है. यहां से अभी बहुत काम किया जाना बाकी है. आप सभी अपनी सेवा के माध्यम से ईश्वर प्राप्ति के इस आध्यात्मिक पथ पर सफल हों.’
ये युवा अपनी जीवन भर की यात्रा में वैदिक शिक्षाओं को अपने साथ लेकर चलते हैं. आज अक्षरधाम मंदिर के इस गौरवशाली परिसर से वे प्रेम, नि:स्वार्थता और एकता के सार्वभौमिक संदेशों को विश्व में प्रसारित करेंगे. गौरतलब है कि उसी दिन शाम को, अक्षरधाम ने अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाने के लिए “मूल्यों और अहिंसा का उत्सव” नामक एक सांस्कृतिक कार्यक्रम की मेजबानी की. पूरे उत्तरी अमेरिका से भक्त और शुभचिंतक सत्य, अहिंसा और समानता सहित हिंदू धर्म के प्रमुख सिद्धांतों पर चर्चा करने के लिए एकत्र हुए थे.
अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस महात्मा गांधी के जीवन और कार्य का स्मरण करता है. वे एक ऐसे नेता थे जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के के लिए अहिंसक प्रतिरोध का समर्थन किया. चूंकि अहिंसा और शांति के ये सनातन मूल्य हिंदू शास्त्रों में अंतर्निहित हैं. हिंदू आस्था के पवित्र ग्रंथ अहिंसक मूल्यों का आज भी मार्गदर्शन करते हैं. अपने प्रवचन में, पूज्य स्वयंप्रकाशदास स्वामी (डॉक्टर स्वामी) ने कहा, ‘महात्मा गांधी की जयंती के इस दिन, आईए हम उनके जीवन से प्रेरणा लें-सफलता केवल शब्दों से नहीं, बल्कि हमारे कार्यों और चरित्र की शुद्धता से प्राप्त होती है.’ अक्षरधाम आध्यात्मिक भक्ति, सांस्कृतिक विरासत और एकता के प्रतीक के रूप में कार्य करता है और भारत की जीवंत परंपराओं और विरासत को विश्व कल्याण के लिए साझा करता है.