69000 सहायक शिक्षक भर्ती में 19000 सीटों पर हुए आरक्षण घोटाले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अब 10 दिसंबर के बजाय 4 दिसंबर को सुनवाई होगी ।
4 दिसंबर को कोर्ट नंबर 16 में सुनवाई करने वाली बेंच में एक जस्टिस का भी बदलाव हुआ है तथा अब जस्टिस दींपाकर दत्ता के साथ जस्टिस संजय करोल मौजूद रहेंगे जबकि इससे पहले इस बेंच में जस्टिस दींपाकर दत्ता के साथ जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा हुआ करते थे तथा अब यह सुनवाई 4दिसंबर को सीरियल नंबर 36 पर होगी ।
लखनऊ हाई कोर्ट सिंगल बेंच से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक आरक्षण पीड़ित अभ्यर्थियों का केस लड़ रहे मुख्य पैरवीकार भास्कर सिंह एवं सुशील कश्यप का कहना है कि 4 दिसंबर को होने बाली सुनवाई के लिए उनकी तैयारी पूरी तरह से पूर्ण है तथा आरक्षण घोटाले के मुद्दे पर वह सुप्रीम कोर्ट से निश्चित तौर पर जीतेंगे और उनकी जीत सभी आरक्षण पीड़ित अभ्यर्थियों की जीत होगी ।
इनका स्पष्ट तौर पर कहना है की उत्तर प्रदेश सरकार ने 69000 सहायक शिक्षक भर्ती की संपूर्ण प्रक्रिया को प्रदेश स्तर से संपन्न किया है ऐसी स्थिति मे अनारक्षित की कट ऑफ 67.11 तथा ओबीसी की कटऑफ 66.73 के बीच अंतर 0.38 के बीच आखिर सरकार ने ओबीसी कोटे की 27% सीट 18598 सीट किस प्रकार इस भर्ती प्रक्रिया में समायोजित कर दी यह अपने आप में बहुत बड़ा सवाल है और फिर इसके बाद सरकार ने इस भर्ती में बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 तथा आरक्षण नियमावली 1994 का घोर उल्लंघन करके जिस प्रकार ओवरलैपिंग प्रक्रिया को धराशाई किया है यह आरक्षण पीड़ित अभ्यर्थियों ने लखनऊ हाई कोर्ट डबल बेंच में बता दिया और इसी आधार पर लखनऊ हाई कोर्ट डबल बेंच ने 13 अगस्त को 69000 सहायक शिक्षक भर्ती की पूरी लिस्ट को ही रद्द कर दिया अब ऐसी स्थिति में यदि उत्तर प्रदेश सरकार चाहती है कि इस मामले का जल्द निस्तारण हो तो अब उत्तर प्रदेश सरकार को चाहिए कि वह 4 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई में आरक्षण पीड़ित अभ्यर्थियों के पक्ष में याची लाभ का प्रपोजल पेश करें ताकि सुप्रीम कोर्ट में वर्ष 2020 से अब तक महेंद्र पाल केस से जुड़े रिट कोर्ट के लगभग 2000 के आसपास आरक्षण पीड़ित अभ्यर्थियों को याची लाभ मिल जाए और इस भर्ती प्रक्रिया का निस्तारण हो सके अगर सरकार ऐसा करती है तो उत्तर प्रदेश सरकार को इस शिक्षक भर्ती की मूल चयन सूची भी नहीं दिखानी होगी तथा किसी भी वर्ग का