हमास का समर्थन कर रहा ईरान सिर्फ बयानबाजी कर रहा है

हमास का समर्थन कर रहा ईरान सिर्फ बयानबाजी कर रहा है

हमास और इजराइल की जंग को 45 दिन बीत चुके हैं. आईडीएफ गाजा में घुसकर ऑपरेशन को अंजाम दे रही है. हमास का समर्थन कर रहा ईरान सिर्फ बयानबाजी कर रहा है. उसने ये साफ भी कर दिया है कि वह सीधे तौर पर इस युद्ध में नहीं उतरेगा. माना जा रहा है कि इसकी पटकथा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने लिखी है. यही रणनीति वो वजह है जिससे ईरान और उसके सहयोगी चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे.

बताया तो यहां तक जा रहा है कि अमेरिका की तरफ से तेहरान को कई प्रलोभन दिए गए हैं. इसमें फ्रीज किए हुए अरबों डॉलर जारी करने और संघर्ष में हस्तक्षेप न करने के बदले मेंप्रतिबंध हटाने का वादा किया गया है. इसके अतिरिक्त यूरोप और मध्य पूर्व में अमेरिकी सहयोगी ईरान को आर्थिक और राष्ट्रीय सुधार में सहायता के लिए वित्तीय सहायता के समर्थक रहे हैं.

7 अक्टूबर को जब हमास ने इजराइल में घुसकर हमले को अंजाम दिया था और उसके जवाब में इजराइल ने ऑपरेशन छेड़ा था तो ईरान ने खुलकर हमास का समर्थन किया था. इसके अलावा हमास ने हिज़्बुल्लाह, ईरान और दूसरे अरब देशों से युद्ध में मदद की मांग की थी, लेकिन ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने इस महीने हमास के राजनीतिक ब्यूरो के प्रमुख इस्माइल हनीयेह के साथ एक बैठक के दौरान कहा कि ईरान युद्ध में प्रवेश नहीं करेगा.

ईरान को शायद अमेरिकी विमानवाहक पोतों की तीव्र तैनाती की उम्मीद नहीं थी. इस खतरे को भांपते हुए ईरानी नेतृत्व ने शायद तेहरान के परमाणु कार्यक्रम को खतरे में नहीं डालने का फैसला किया है, जिसे अब अपने अंतिम चरण में माना जाता है. इसके साथ ही ईरान की वायु और मिसाइल रक्षा प्रणालियां उतनी प्रभावी नहीं हैं, जितनी पहले मानी जाती थीं. इजराइल के साथ चौतरफा टकराव से तेहरान की सैन्य श्रेष्ठता के दावों के उजागर होने का खतरा होगा.

युद्ध में शामिल होने से ईरान को अपनी सबसे मूल्यवान संपत्तियों में से एक हिज़्बुल्लाह को खोना पड़ सकता है. लेबनानी आतंकवादी समूह उसके लिए बेशकीमती है, क्योंकि तेहरान पर खतरा बनने वालों के लिए वह रक्षा की पहली पंक्ति है और एक अनमोल कार्ड है, जिसे तेहरान खोना नहीं करना चाहता है.

यदि ईरानी नेतृत्व अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने और ईरानी लोगों के लिए बेहतरीन कार्यक्रम शुरू करने का इरादा रखता है, तो उसके फ्रीज पड़े अपने अरबों डॉलर के फंड को अनलॉक करने और प्रतिबंधों को हटाने की आवश्यकता है. तेहरान को यह एहसास है कि अगर वह उत्पीड़न, गरीबी और धर्मतंत्र के सामने युवाओं की प्रतिक्रियाओं पर ध्यान नहीं देता है तो शासन लंबे समय तक कायम नहीं रखा जा सकता.

तेहरान ने निर्णय लिया है कि उसके पास खाड़ी देशों के साथ एक अनूठा अवसर है, जिनमें से कुछ उसकी ओर से मध्यस्थता में लगे हुए हैं और मजबूत व्यापार संबंध बनाए हैं. ईरान चीन की मध्यस्थता में अपने और सऊदी अरब के बीच द्विपक्षीय समझौते के सकारात्मक तत्वों का फायदा उठाना चाहता है.

अगर तेहरान ने वास्तव में शासन को बचाने के लिए अपनी विचारधारा को बदलने का फैसला किया तो वह सैन्य हस्तक्षेप से दूर रहकर अमेरिका के अहसानों को क्या मंजूर करेगा? क्योंकि तेहरान में व्यावहारिकता और राजनीतिक यथार्थवाद की ओर किसी भी बदलाव पर संदेह करता है. इस मामले में शासन को अपने प्रतिनिधियों का पुनर्मूल्यांकन करने और उनका पुनर्वास करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

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