
जगदीशपुर सीएचसी: इलाज कम, बवाल ज्यादा, रामभरोसे स्वास्थ्य सेवाएं
संवाददाता: गंगेश पाठक
जगदीशपुर, अमेठी। जगदीशपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) की बदहाल स्थिति अब किसी से छिपी नहीं है। स्थानीय लोगों का कहना है कि मरीजों को उचित इलाज मिलना तो दूर, यहां अक्सर उन्हें अपमान और अभद्रता का सामना करना पड़ता है। डॉक्टरों की मनमानी और प्रशासन की चुप्पी ने स्वास्थ्य सेवाओं को मजाक बना दिया है। सूत्रों के अनुसार, अस्पताल में अव्यवस्था और लापरवाही के ऐसे हालात हैं कि मरीजों की जिंदगी पर खतरा मंडरा रहा है, लेकिन जिम्मेदार प्रतिनिधि और अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हैं।
स्थानीय लोगों के अनुसार, जगदीशपुर सीएचसी में नए डॉक्टरों को लंबे समय तक रुकने नहीं दिया जाता। वहीं, कुछ पुराने डॉक्टरों ने यहां अपनी मजबूत पकड़ बना ली है और किसी भी कीमत पर अपनी तैनाती को बरकरार रखना चाहते हैं। सूत्रों का दावा है कि अस्पताल में कुछ डॉक्टर सरकारी आवासों में रहकर सुबह-शाम निजी प्रैक्टिस भी करते हैं और इससे आर्थिक लाभ कमाते हैं। हालांकि, वर्तमान में ऐसी गतिविधियां चल रही हैं या नहीं, इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है।
यह भी आरोप है कि कुछ डॉक्टर केवल कैमरे पर उपस्थिति दर्ज कराकर चले जाते हैं, जबकि असल में वे अस्पताल में कम और निजी कामों में ज्यादा व्यस्त रहते हैं। सूत्रों का कहना है कि जब कभी इनका तबादला होता भी है, तो राजनीतिक सिफारिशों और प्रभाव के चलते ट्रांसफर रुकवा लिया जाता है और डॉक्टर वापस यहीं लौट आते हैं। और यही अपना सिक्का जमाये रहते हैं
हाल ही में भाजपा के पूर्व मंडल अध्यक्ष नकछेद दुबे के साथ हुई घटना ने अस्पताल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। दुबे अपने गांव के मनोज कोरी को इलाज के लिए अस्पताल लाए थे, लेकिन इमरजेंसी में तैनात चिकित्सक ऋषि पांडेय ने कथित रूप से मरीज को देखने से इनकार कर दिया। आरोप है कि विरोध करने पर चिकित्सक ने दुबे के साथ अभद्रता की और मारपीट तक कर दी। दुबे ने इसकी शिकायत उच्चाधिकारियों से की, जिसके बाद डॉक्टर का तबादला कर दिया गया।
सूत्रों का कहना है कि भाजपा नेता होने की वजह से कार्रवाई हो गई, लेकिन आम नागरिकों को इस तरह की त्वरित कार्रवाई शायद ही देखने को मिलती है। स्थानीय लोगों का मानना है कि कई मामलों में शिकायतें करने के बावजूद प्रशासनिक स्तर पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते।
अस्पताल परिसर में अव्यवस्था और लापरवाही के आरोप लगातार सामने आते रहे हैं। मरीजों के तीमारदारों का कहना है कि डॉक्टरों की गैर-मौजूदगी आम हो चुकी है। हालांकि, इस मामले में अस्पताल प्रशासन या स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
चौंकाने वाली बात यह है कि जब अस्पताल में मरीज तड़प रहे होते हैं, तब जनप्रतिनिधि और अधिकारी भंडारों और होली मिलन समारोहों में व्यस्त दिखाई देते हैं। सूत्रों के अनुसार, प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य विभाग से जुड़े राज्य मंत्री के जिले में ही स्वास्थ्य सेवाएं इस कदर चरमरा गई हैं, मगर उनका ध्यान अस्पताल की दुर्दशा पर नहीं है।
स्थानीय लोग बताते हैं कि आए दिन जगदीशपुर विधानसभा में होली मिलन, जन्मदिन और भंडारे जैसे आयोजन होते रहते हैं, जिनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर छाई रहती हैं। अधिकारी और जनप्रतिनिधि इन आयोजनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं, लेकिन जब बात अस्पताल की बदहाल स्थिति की आती है, तो सभी चुप्पी साध लेते हैं।
हाल ही में एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है, जिसमें मरीजों और तीमारदारों की बेबसी साफ देखी जा सकती है। वीडियो में कथित तौर पर डॉक्टर और कर्मचारियों की लापरवाही उजागर हुई है। इसके बावजूद, जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
क्षेत्रीय जनता ने मांग की है कि जिलाधिकारी स्वयं अस्पताल का औचक निरीक्षण करें और मामले की निष्पक्ष जांच कराएं। लोगों का कहना है कि जब तक वरिष्ठ अधिकारी मौके पर पहुंचकर वास्तविकता नहीं देखेंगे, तब तक सुधार की उम्मीद करना व्यर्थ है। अस्पताल में उपलब्ध दवाइयों की जानकारी को सार्वजनिक करने और अस्पताल परिसर में सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने की भी मांग की जा रही है।
इस मामले में अस्पताल प्रशासन और संबंधित डॉक्टरों से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। वहीं, स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी भी इस पर टिप्पणी करने से बचते नजर आए।
अब देखने वाली बात होगी कि प्रशासन इस पर क्या कदम उठाता है और स्वास्थ्य सेवाओं को रामभरोसे छोड़ने की बजाय सुधार की दिशा में कब ठोस कार्रवाई करता है। जनता चाहती है कि जगदीशपुर सीएचसी की बदहाल व्यवस्था पर जल्द से जल्द प्रभावी कदम उठाए जाएं।