भारत का कार्बन बाज़ार: उत्सर्जन से निपटने और हरित प्रथाओं को प्रोत्साहित करने के लिए नई रूपरेखा
भारत ने जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने और अपने महत्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए, दो आवश्यक दिशानिर्देश जारी किए हैं, जो भारतीय कार्बन बाजार (आईसीएम) के भविष्य को आकार देंगे। ये अनुपालन व्यवस्था के लिए विस्तृत प्रक्रिया और मान्यता प्राप्त कार्बन सत्यापन एजेंसियों के लिए मान्यता प्रक्रिया और पात्रता मानदंड हैं। आशा है कि वे मिलकर कार्बन उत्सर्जन की मात्रा निर्धारित करने और कार्बन क्रेडिट के व्यापार को सुविधाजनक बनाने के भारत के प्रयासों को उत्प्रेरित करेंगे, जिससे देश अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं को अपनाएगा।
भारत की जलवायु रणनीति, जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के अंतर्गत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) में उल्लिखित है। भारत ने न केवल इसे पूरा किया है बल्कि अपने कई लक्ष्यों को निर्धारित समय से पहले ही पूरा कर लिया है। वर्ष 2016 में हस्ताक्षरित, पेरिस समझौते का उद्देश्य सदी के अंत तक वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित करना था। भारत ने शुरू में वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 33-35 प्रतिशत तक कम करने का वादा किया था। हालाँकि, भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हुए इस लक्ष्य को समय से पहले ही प्राप्त कर लिया। अपनी महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाते हुए, 2021 में ग्लासगो में पार्टियों के सम्मेलन (सीओपी-26) में, भारत ने और भी अधिक आक्रामक लक्ष्य निर्धारित किए। इसने वर्ष 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने, वर्ष 2030 तक अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45 प्रतिशत तक कम करने और उसी समय सीमा के भीतर गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से अपनी 50 प्रतिशत बिजली उत्पन्न करने का लक्ष्य निर्धारित किया था। इनमें से कुछ प्रमुख उपलब्धियां तय समय से पहले ही हासिल करके, भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयास में नेतृत्व का प्रदर्शन किया है।
लेकिन हम वहां कैसे पहुंचे? यहीं पर भारतीय कार्बन बाजार (आईसीएम) आता है। विचार सरल है: यदि कोई कंपनी अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करती है, तो वह कार्बन क्रेडिट नामक कुछ अर्जित करती है, जिसे वह अन्य कंपनियों को बेच सकती है जो अपने उत्सर्जन को कम करने के लिए संघर्ष कर रही हैं। यह एक पुरस्कार प्रणाली की तरह है – जो कंपनियाँ पर्यावरण के लिए बेहतर काम करती हैं वे पैसा कमा सकती हैं, जबकि जिन्हें सुधार के लिए अधिक समय की आवश्यकता है वे अपने अतिरिक्त उत्सर्जन की भरपाई के लिए क्रेडिट खरीद सकती हैं।
भारतीय कार्बन बाजार को एक व्यापक और पारदर्शी प्रणाली की आवश्यकता है जो आर्थिक विकास को गति देते हुए डीकार्बोनाइजेशन को बढ़ावा दे सके। भारतीय कार्बन बाजार, उत्सर्जन मूल्य निर्धारण पर बल देने के साथ, इस संतुलन को प्राप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण व्यवस्था प्रस्तुत करता है। कंपनियों को कार्बन क्रेडिट का व्यापार करने की अनुमति देकर, भारत का लक्ष्य सार्वजनिक और निजी दोनों हितधारकों को अपने कार्बन उत्सर्जन को सक्रिय रूप से कम करने के लिए प्रोत्साहित करना है, जिससे देश को लागत प्रभावी और बडे पैमाने पर डीकार्बोनाइज करने में सक्षम बनाया जा सके।
भारतीय कार्बन बाज़ार ढांचे का निर्माण
भारतीय कार्बन बाजार की नींव वर्ष 2022 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 में संशोधन के साथ रखी गई थी