ज्योतिषाचार्य एस0एस0 नागपाल

लखनऊ। ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखा जाता है इसमें वट वृक्ष की पूजा की जाती है। इस वर्ष वट सावित्री व्रत 19 मई को है। इस व्रत को बरगदाही व्रत भी कहते हैं महिलायें ये व्रत अखण्ड सौभाग्य के लिये करती है। इस व्रत में उपवास रखते है। ये व्रत सावित्री द्वारा अपने पति को पुनः जीवित करने की स्मृति के रूप में रखा जाता है। वट वृक्ष को देव वृक्ष माना जाता है। इसकी जड़ों में ब्रह्नााजी, तने में विष्णु जी का और डालियों और पत्तियों मेें भगवान शिव का वास माना जाता है।

वट वृक्ष की पूजा से दीर्घायु , अखण्ड सौभाग्य और उन्नति की प्राप्ति होती है। अमावस्या तिथि 18 मई को रात 09:42 से प्रारम्भ हो कर 19, मई को रात 09:22 तक रहेगी वट वृक्ष पूजन करना श्रेष्ठ है वट सावित्री व्रत के दिन काफी अच्छा संयोग बन रहा है। इस दिन शनि जयंती के साथ शोभन योग भी है यह योग 18 मई को शाम 7.37 बजे से 19 मई शाम 6.16 बजे तक है। इस दिन शनि स्वराशि कुंभ में रहकर शश राजयोग बनाएंगे। इसके साथ इस दिन चंद्रमा गुरु के साथ मेष राशि में होंगे जिससे गजकेसरी योग बन रहा है. इस खास योग में पूजा करने से फल कई गुना अधिक बढ़ जाएगा।

व्रत विधानः- प्रातःकाल स्नान आदि के बाद बांस की टोकरी में सप्त धान्य रख कर ब्रह्ना जी की मूर्ति की स्थापना कर फिर सावित्री की मूर्ति की स्थापना करते है और दूसरी टोकरी में सत्यवान और सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करके टोकरी को वट वृक्ष के नीचे जाकर ब्रह्ना तथा सावित्री के पूजन के बाद सत्यवान और सावित्री की पूजा करके बड़ (बरगद) की जड़ में जल देते है।वट वृक्ष (बरगद) के नीचे बैठ कर सावित्री और सत्यवान की कथा भी सुननी चाहिए पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भीगा चना, फूल तथा धूप से पूजन करते है। वट वृक्ष पूजन में तने पर कच्चा सूत लपेट कर 108 परिक्रमा का विधान है किन्तु न्यूनतम सात बार परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए।

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