वाराणसी: सावन माह के पहले सोमवार पर यादव बंधुओं ने किया बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक

वाराणसी। सावन माह के पहले सोमवार पर परम्परानुसार यदुवंशियों ने जलाभिषेक की परम्परा पूरे उत्साह और उल्लास के साथ निभाई। चंद्रवंशी गोप सेवा समिति के बैनर तले जुटे यादव बंधुओं ने श्री गौरी केदारेश्वर महादेव का जलाभिषेक कर यात्रा शुरू की।

यात्रा में यादव समाज का ध्वज और डमरू बजाते युवकों का दल आगे-आगे चल रहा था। हर-हर महादेव का उद्घोष करते हुए यादव बंधु चांदी व पीतल के कलश कंधे पर रख उत्साह से यात्रा में शामिल हुए। यात्रा में नौजवान, वृद्ध और बच्चे अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे, ऐसा लग रहा था कि स्वयं महादेव धरती पर सावन में अवतरित हुए हैं। किसी के साफा की सफेदी लाजवाब थी तो किसी की धोती गंजी तो कोई स्वयं भोलेनाथ का रूप धारण कर भक्ति भाव समूह में दिख रहा था। यात्रा में समाज के झण्डे को कंधा पर लिये दुर्गा प्रसाद एवं डमरू का संचालन विष्णु यादव कर रहे थे। जगह-जगह पर यादव बंधुओं द्वारा प्रसाद व फलाहार का वितरण किया गया।

यात्रा परम्परागत मार्ग से होते हुए बाबा तिलभाण्डेश्वर, शीतला माता आल्हादेश्वर महादेव के बाद ढ़ुढ़ीराज गणेश होते हुए श्री काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में पहुंची। श्री काशी विश्वनाथ धाम में गंगा द्वार से प्रवेश करके पश्चिमी द्वार से गर्भगृह में यादव बंधुओं ने बाबा का जलाभिषेक किया। इस बार केवल 21 यादव बंधुओं को ही गर्भगृह में जलाभिषेक की अनुमति मिली थी। बाकी यदुवंशी समाज के लोगों ने गर्भगृह के बाहर से ही जलाभिषेक किया।

यह यात्रा श्री काशी विश्वनाथ दरबार के बाद दारानगर स्थित मृत्युंजय महादेव, त्रिलोचन महादेव, ओम कालेश्वर महादेव, लाटभैरव पर जलाभिषेक कर यात्रा का समापन किया गया। यात्रा में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष हंसराज अहीर ने भी भागीदारी की। जलाभिषेक यात्रा में प्रमुख रूप से आयुष्मान यादव ‘चंद्रवंशी, विनय यादव, अभिषेक यादव, मनोज यादव, शरद यादव, राजेश यादव, सोनू यादव, विजेन्द्र यादव ‘नाटे’, दुर्गा यादव, गोपाल जी यादव, चुलबुल सरदार, गणेश यादव, भईयालाल पहलवान, रवि यादव ‘कल्लू’, रोहित यादव, पप्पू सरदार, बाले सरदार, सदन सरदार, राहुल ‘रूद्रा’ सुरज यादव, चांद यादव, गौतम यादव, शालिनी यादव, अशोक यादव आदि शामिल रहे।

-साल 1932 में कलश यात्रा की शुरूआत हुई

चंद्रवंशी गोप सेवा समिति के प्रदेश अध्यक्ष लालजी यादव ने बताया कि साल 1932 में इस यात्रा की शुरूआत हुई थी। 1932 में भीषण अकाल पड़ा था। तब शीतला गली में रहने वाले पांच दोस्त भोला सरदार, कृष्णा सरदार व बच्चा सरदार और ब्रह्मनाल के चुन्नी सरदार व रामजी सरदार घनिष्ठ ने संकल्प लिया कि वह बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक करेंगे। पांचों दोस्तों के जलाभिषेक के बाद यदि बारिश हुई तो अगले साल से पूरा यदुवंशी समाज सावन में बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक करेगा। पांचों दोस्तों ने गौरी केदारेश्वर से लाटभैरव मंदिर के बीच विश्वनाथ मंदिर सहित सात शिवालयों, भैरव मंदिर और एक शक्ति पीठ में जलाभिषेक किया। फिर बारिश हुई और तब से वह परंपरा आज तक लगातार जारी है। पिछले दो वर्षो में कोरोना काल में भी यादव समाज ने सांकेतिक रूप से बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक किया था।

लालजी यादव ने कहा कि समाज के कुछ लोग जलाभिषेक के नाम पर राजनीति करने का कार्य कर रहे हैं, हम इसे कत्तई स्वीकार नहीं करते। वे लोग अपने निजी स्वार्थ के लिये समाज का नाम बेचने का कार्य कर रहे हैं। हम सब इस कुरीतियों को समाज से दूर करेंगे। उन्होंने बताया जलाभिषेक यात्रा में केदार घाट स्थित गौरी केदारेश्वर मंदिर, तिलभांडेश्वर महादेव, दशाश्वमेध स्थित शीतला मंदिर, आह्लादेश्वर महादेव, काशी विश्वनाथ, महामृत्युंजय, त्रिलोचन महादेव, ओमकारेश्वर महादेव और लाटभैरव का जलाभिषेक करने की परंपरा है।

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