कुशीनगर । उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में सिर पर दउरा और सूप लेकर घाटों की ओर जाते लोग। पीछे.पीछे छठ माता के गीत गाते चल रहीं महिलाएं। साथ में पटाखे जलाते बच्चेए ढोल.नगाड़ों की गूंज के बीच छठ माता के जयकारे लगा रहे थे। रविवार को पूरी गोरक्षनगरी में छठ महापर्व का उल्लास नजर आया। घाटों पर मेले जैसा दृश्य दिखा। यही हाल सोमवार सुबह भी दिखाई दिया। व्रती महिलाओं ने उगते सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा अर्चना की। वहीं रविवार को व्रती महिलाओं ने वेदी पर पूजा.अर्चना करने के बाद अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया। फिर घर लौटकर पूजा.पाठ में जुट गईं।

छठ महापर्व के तीसरे दिन शहर के गोरखनाथ मंदिर के भीम सरोवर, सूर्यकुंड, महेसरा, मानसरोवर, रामगढ़ताल सहित तमाम घाटों पर कुछ ऐसा ही नजारा दिखा। घाटों पर आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा था। चारों ओर छठ माता के गीत गूंज रहे थे। दोपहर दो बजे से ही घाटों पर व्रती महिलाओं की भीड़ जुटने लगी। तमाम महिलाएं बैंड.बाजे के साथ घाटों पर पहुंचीं। कुछ देर पानी में खड़े होने के बाद शुभ मुहूर्त में अस्तांचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया।

जैसे-जैसे अर्घ्य देने का समय निकट आया। घाटों पर छठ माता के जयकारे गूंजने लगे। परिवार के पुरुष सदस्यों और पंडितों ने सूर्य देव को अर्घ्य दिलाया। गोरखनाथ मंदिर में भी छठ पूजा के लिए बड़ी संख्या में महिलाएं भीम सरोवर पहुंचीं और सूर्य को अर्घ्य देकर संतान की दीर्घायु के लिए प्रार्थना किया।ऐसा ही नजारा सूर्यकुंड धाम पर देखने को मिला। महानगर के असुरन चौक, रुस्तमपुर, विष्णुपुरम, बौलिया कॉलोनी, कूड़ाघाटकूड़ाघाट, आवास विकास कॉलोनी, इंजीनियरिंग कॉलेज, बिलंदपुर, गोरखपुर विश्वविद्यालय, बेतियाहाता, मोहद्दीपुर,शाहपुर,,सहारा इस्टेट, गीता वाटिका, पादरी बाजार सहित महानगर के तमाम मोहल्लों और कॉलोनियों के आसपास अस्थायी तालाब बनाए गए हैंए जहां व्रती महिलाओं ने विधि.विधान से पूजा-अर्चना की।

अस्तांचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद घरों में छठ माता की कृपा पाने के लिए कोशी भरी गई। कइयों ने मन्नत पूरी होने के बाद छठ माता के प्रति आस्था निवेदित करते हुए कोसी भरी। माताओं ने कोसी पर दीप जलाकर छठ माता की पूजा.अर्चना की। रात्रि जागरण कर पूरी रात छठ माता की आराधना में लगी रही। सोमवार को छठ महापर्व का अंतिम दिन था। इस दिन धनिष्ठा नक्षत्र और ध्रुव योग और शुभ नामक नामक औदायिक योग है।

इस प्रकार सूर्य षष्ठी का महापर्व प्रवर्धमान योग से प्रारंभ होकर शुभ योग में समाप्त हो गया। ऐसा योग बहुत मुश्किल से प्राप्त होता है। पंडित शरद चंद्र मिश्र के अनुसारए सूर्य को परम ब्रह्म और माया षष्ठी को परा प्रकृति की संज्ञा दी जाती है।

इस महापर्व पर समस्त देवगणों की अनुकंपा व्रतियों को प्राप्त हुई। इस दिन व्रती ब्रह्म मुहूर्त में नई अर्घ्य सामग्री लेकर जलाशय में खड़ी होकर अरुणोदय की प्रतीक्षा कीं। जैसे ही क्षितिज पर अरुणिमा दिखाई दियाए वह मंत्रोच्चार के साथ भगवान सूर्य को अर्घ्य दीं। इसके बाद वह व्रत का पारण किया।

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