ब्रिटेन के देसी प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के सामने कई तरह की मुश्किलें खड़ी हो गई हैं. वह इन दिनों अपनी ही पार्टी को यूनाइट करने की जद्दोजहद में जुटे हैं. सुनक अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल के सबसे खतरनाक दौर से गुजर रहे हैं. उनपर कोरोना नियमों के उल्लंघन के मामले भी चल रहे हैं, जिसकी वजह से कहा जाता है कि बोरिस जॉनसन को सत्ता गंवानी पड़ी. इनके अलावा उनकी नीतियों में शामिल शर्णार्थी संबंधी विधेयक पर भी पार्टी के नेता बंट गए हैं.
भारतीय मूल के ब्रिटिश पीएम सुनक के सामने सबसे बड़ी चुनौति सरकार की नीतियों पर पार्टी के नेताओं को एकजुट करने की है. वह शर्णार्थियों को रवांडा भेजे जाने को लेकर ब्रिटेन की नीतियों में बदलाव करना चाहते हैं, जिसके बाद ब्रिटेन में रह रहे शर्णार्थियों को वापस उनके देश भेज दिया जाएगा. सुनक अपनी चुनावी रैलियों में भी यह वादे किए थे. ब्रिटेन में शर्णार्थी एक बड़ा मुद्दा है और कंजर्वेटिव पार्टी की नीतियां कुछ हद तक उनके समर्थन में रही है.
ऋषि सुनक कंजर्वेटिव पार्टी के ही नेता हैं, जो एक साल पहले ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने थे. सुनक सिर्फ पार्टी नेताओं का ही विरोध नहीं झेल रहे हैं, बल्कि शर्णार्थी संबंधि नियमों को रिवाइव करने के मामले पर अन्य पार्टियों के नेता, लेफ्ट विंग से लेकर राइट विंग तक के विरोधों का सामना कर रहे हैं. पार्टी नेताओं ने भी चेतावनी दी है कि अगर इस तरह के बिल संसद में पेश किए जाते हैं तो वे खिलाफ वोट करेंगे.
ब्रिटिश संसद कानून पर मंगलवार को पहला मतदान करेगी जिससे कुछ मानवाधिकार कानून प्रभावित होंगे. इस इरादे से कि यह अगले साल होने वाले राष्ट्रीय चुनाव से पहले पहली निर्वासन उड़ानों को रवांडा के लिए रवाना होने की इजाजत देगा. पार्टी के कुछ उदारवादी नेता सुनक की इस नीति का विरोध कर रहे हैं. वे कह रहे हैं कि यह ब्रिटेन का मानवाधिकार उल्लंघन होगा. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का भी उल्लंघन माना जाएगा. वहीं कुछ दक्षिमपंथी विचारधारा के नेता भी विरोध में हैं.
ऋषि सुनक राजनीतिक मोर्चे ही नहीं बल्कि आर्थिक मोर्चे पर भी संकटों का सामना कर रहे हैं. अगले साल चुनाव भी सुनक के लिए चुनौतिपूर्ण है, जहां ओपिनियन पोल में कंजर्वेटिव पार्टी हार रही है. ऐसे में सुनक की रवांडा नीति उनकी सरकार के लिए एक बड़ा टर्निंग पॉइंट हो सकता है, जहां वकील भी कह रहे हैं कि यह काम नहीं करेगा. ब्रिटिश सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस नीति को असंवैधानिक बता चुका है, जिसका कहना है कि इससे कुछ वैध शर्णार्थी भी प्रभावित हो सकते हैं.